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कंकाल-अध्याय -५३

फतेहपुर सीकरी से अछनेरा जाने वाली सड़क के सूने अंचल में एक छोटा-सा जंगल है। हरियाली दूर तक फैली हुई है। यहाँ खारी नदी एक छोटी-सी पहाड़ी से टकराती बहती है। यह पहाड़ी सिलसिला अछनेरा और सिंघापुर के बीच में है। जन-साधारण उस सूने कानन में नहीं जाते। कहीं-कहीं बरसाती पानी के बहने से सूखे नाले अपना जर्जर कलेवर फैलाये पड़े हैं। बीच-बीच मे ऊपर के टुकड़े निर्जल नालों से सहानुभूति करते हुए दिखाई दे जाते हैं। केवल ऊँची-उँची टेकरियों से बस्ती बसी है। वृक्षों के एक घने झुरमुट में लता-गुल्मों से ढकी एक सुन्दर झोंपड़ी है। उसमें कई विभाग हैं। बड़े-बड़े वृक्षों के नीचे पशुओ के झुंड बसे हैं; उनमें गाय, भैंस और घोड़े भी हैं। तीन-चार भयावने कुत्ते अपनी सजग आँखों से दूर दूर बैठे पहरा दे रहे हैं। एक पूरा पशु परिवार लिए गाला उस जंगल में सुखी और निर्भर रहती है। बदन गूजर, उस प्रान्त के भयानक पशुओं का मुखिया गाला का सत्तर बरस का बूढ़ा पिता है। वह अब भी अपने साथियों के साथ चढ़ाई पर जाता है। गाला का वयस यद्यपि बीस के ऊपर है। फिर भी कौमार्य के प्रभाव से वह किशोरी ही जान पड़ती है। गाला अपने पक्षियों के चारे-पानी का प्रबन्ध कर रही थी। देखा तो एक बुलबुल उस टूटे हुए पिंजरे से भागना चाहती है। अभी कल ही गाला ने उसे पकड़ा था। वह पशु-पक्षियों को पकड़ने और पालने में बड़ी चतुर थी। उसका यही खेल था। बदन गूजर जब बटेसर के मेले में सौदागर बनकर जाता, तब इसी गाला की देखरेख में पले हुए जानवर उसे मुँह माँगा दाम दे जाते। गाला अपने टूटे हुए पिंजरे को तारों के टुकड़े और मोटे सूत से बाँध रही थी। सहसा एक बलिष्ठ युवक ने मुस्कराते हुए कहा, 'कितनों को पकड़कर सदैव के लिए बन्धन में जकड़ती रहोगी, गाला?' 'हम लोगों की पराधीनता से बड़ी मित्रता है नये! इसमें बड़ा सुख मिलता है। वही सुख औरों को भी देना चाहती हूँ-किसी से पिता, किसी से भाई, ऐसा ही कोई सम्बन्ध जोड़कर उन्हें उलझाना चाहती हूँ; किन्तु पुरुष, इस जंगली बुलबुल से भी अधिक स्वतन्त्रता-प्रेमी है। वे सदैव छुटकारे का अवसर खोज लिया करते हैं। देखा, बाबा जब न होता है तब चले जाते हैं। कब तक आवेंगे तुम जानते हो?' 'नहीं भला मैं क्या जानूँ! पर तुम्हारे भाई को मैंने कभी नहीं देखा।' 'इसी से तो कहती हूँ नये। मैं जिसको पकड़कर रखना चाहती हूँ, वे ही लोग भागते हैं। जाने कहाँ संसार-भर का काम उन्हीं के सिर पर पड़ा है! मेरा भाई? आह, कितनी चौड़ी छाती वाला युवक था। अकेले चार-चार घोड़ों को बीसों कोस सवारी में ले जाता। आठ-दस सिपाही कुछ न कर सकते। वह शेर-सा तड़पकर निकल जाता। उसके सिखाये घोड़े सीढ़ियों पर चढ़ जाते। घोड़े उससे बातें करते, वह उनके मरम को जानता था।' 'तो अब क्या नहीं है?' 'नहीं है। मैं रोकती थी, बाबा ने न माना। एक लड़ाई में वह मारा गया। अकेले बीस सिपाहियों को उसने उलझा लिया, और सब निकल आये।' 'तो क्या मुझे आश्रय देने वाले डाकू हैं?' 'तुम देखते नहीं, मैं जानवरों को पालती हूँ, और मेरे बाबा उन्हें मेले में ले जाकर बेचते हैं।' गाला का स्वर तीव्र और सन्देहजनक था।

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